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Writer's pictureSaurabh Chandra

सफरनामा | Safarnama



सफरनामा



इस सागर के सफर में देखो

क्या कुछ पीछे छूट गया है


घर वालों से, दर वालों से

देखो रिश्ता टूट गया है


छूट गयी वो बातें सारी

दोस्त भी सारे रुठ गये हैं


बचपन की यारी के धागे

दूर होने से टूट गये हैं


झूठे हो गये वादे सारे

कसमें भी सब टूट गये


अब तक जो भी संग होने थे

वो सारे पीछे छूट गए


गाँव की उन गलियों से भी तो

देखो सबकुछ खो गया है


शहर होने की चाहत में

खुद गाँव अकेला हो गया है


नहीं बचे अब बाग-बगीचे

किस्से भी तो भूल गए


Hello! Hii! Good morning! में

हम पैरों को छूना भूल गए


भूल गए उन आंखों को भी

जिनमें कई रात गुजारी थी


इस सागर के सफर में हरदम

बस लहरों की मारा - मारी थी


इन लहरों के आलिंगन से



देखो सौरभ अब टूट रहा है


मैं भी छूटा, तुम भी छूटे

अब सबकुछ पीछे छूट रहा है


ये सागर का सफर हमसे

धीरे धीरे सब लूट रहा है


मैं भी छूटा, तुम भी छूटे

अब सबकुछ पीछे छूट रहा है




Written By-

Saurabh







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