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Writer's pictureSaurabh Chandra

कुछ तो बाकी है दरमियाँ हमारे

कुछ तो बाकी है दरमियाँ हमारे


8 सितम्बर 2022 रात के 11 बजने वाले थे. सक्षम अब भी जगा हुआ था और इशिका के फोन का इंतजार कर रहा था। अमूमन रोजाना रात को करीब 10 बजे इशिका का कॉल या मैसेज सक्षम के पास आ जाया करता था और फिर शुरू होती थी उनके पूरे दिन की कहानी। कैसा रहा आज का दिन, किसने क्या किया वगैरह वगैरह.. पिछले 3-4 सालों से ये उन दोनों के लिए एक रुटीन सा बन गया था। सक्षम और इशिका की बातचीत कुछ 5 साल पहले शुरू हुई थी। हाँ, ऐसा बिल्कुल नहीं था कि वे एक दूसरे को पहले से जानते नहीं थे। वे दोनों उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा से सटे एक ही गाँव से आते थे। उन दोनों ने एक ही विद्यालय से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की थी। ये अलग बात है कि स्कूल टाइम में सक्षम अपने शर्मीले व्यहवार की वजह से इशिका से कभी बात नहीं कर पाया था।


स्कूलिंग खत्म होने के बाद सारे स्कूलमेट्स एक दूसरे से अलग हो गये और आगे की पढ़ाई में व्यस्त हो गए। सक्षम भी इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने ख्वाब पूरा करने की दिशा में अग्रसर हो गया। ख्वाब, एक अच्छे से विश्वविद्यालय में पढ़ने का, समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का और देश के लिए कुछ अच्छा कर गुजरने का। घर में मिले अच्छे संस्कारों की वजह से सक्षम एक अच्छा लड़का तो था ही, साथ ही उसके अंदर पढाई को लेकर एक अलग किस्म का जुनून भी था। और इस जुनून को जारी रखने के लिए उसे तलाश थी एक ऐसे शैक्षणिक संस्थान की जहाँ से वह अपने सपनों की तरफ रुख कर सके। उसकी इस तलाश को पूरा किया देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने। सक्षम ने B.H.U की प्रवेश परीक्षा में अच्छी रैंक हासिल कर वहाँ एडमिशन ले लिया।


साल 2018 की बात है जब सक्षम छुट्टियों में अपने गाँव आया हुआ था। दोस्तों से बातचीत के दौरान उसे पता चला कि 1 साल पहले इशिका भी आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई है। यह जानकर सक्षम को बहुत खुशी महसूस हुई कि जिस समय उसके बाकी सारे क्लासमेट्स की शादी हो रही थी या फिर कुछ लड़कियाँ बस डिग्री पाने के लिए एडमिशन ले रहीं थी, उस समय एक लड़की इन सब सामाजिक ताना बाना से अलग हटकर अपने जीवन में कुछ अलग कर गुजरने का हौसला दिखा रही थी।


ये सब जानने के बाद सक्षम के मन में इशिका से बात करने की उत्सुकता जगी और फिर उसने कुछ समय के बाद फेसबुक के माध्यम से उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दिया। सक्षम के मन में एक डर भी लगा हुआ था कि जिससे पूरे स्कूल टाइम में एक बार भी बात नहीं की, उससे अचानक वो कैसे बात करेगा? इशिका क्या सोचेगी उसके बारे में, रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करेगी भी या नहीं... ये तमाम ख्याल उसके मन को खाये जा रहे थे। उधर इशिका अचानक से सक्षम के रिक्वेस्ट को देख कर सोच में पड़ गयी कि सक्षम उसे क्यों रिक्वेस्ट भेज रहा है। स्कूल में तो कभी बात भी नहीं हुई थी। फिर उसने सोचा कि ठीक है, पहले बात करके देखते हैं कि क्या वजह है। खैर दोनों के ही डर बेबुनियाद निकले और उन दोनों की बातों का सिलसिला शुरू हो गया। अब उनकी बातें फेसबुक से बढ़कर कॉल तक पहुँच गयी थी। हर छोटी-छोटी बातों को एक दूसरे से शेयर करना, जिंदगी के लक्ष्य को लेकर हमेशा एक दूसरे को प्रेरित करना और हर समय एक दूसरे को बिना किसी बात के तंग करना ये सब उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका था। धीरे धीरे समय बीतता गया और उन दोनों की दोस्ती एक अटूट रिश्ते की तरह हो गई।


अब क्योंकि सक्षम और इशिका दोनों ही अपने घर से दूर रह रहे थे, तो अकेलेपन ने उन दोनों की ही जिंदगी में अपने लिए एक खास जगह बना ली थी। ऐसे समय में उन दोनों को ही जरूरत थी एक ऐसे दोस्त की जो उनकी बातों को सुनें, हर समय उनका साथ दे और किसी भी समस्या के समय उनके साथ रहे। उन दोनों की ही इस कमी को पूरा किया सक्षम और इशिका ने एक दूसरे का दोस्त बनकर।


उन दोनों की जिंदगी अब काफी खुशनुमा हो गई थी। दोनों ही अपने क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे थे। एक तरफ जहाँ, सक्षम दहेज प्रथा और जातिवाद जैसी सामाजिक कुरितियों पर अपनी बेबाक हिंदी रचनाओं से विश्वविद्यालय में अपनी एक अलग पहचान बना रहा था। वहीं दूसरी तरफ इशिका अपनी बोलती हुई मधुबनी पेंटिंग के जरिये कालेज में सबकी चहेती बन गयी थी। उन दोनों ने ही अपने अपने क्षेत्र में आयोजित बहुत सारी प्रतियोगिताओं में कई मेडल व सर्टिफिकेट हासिल कर लिए थे। वे दोनों एक दूसरे की हर उपलब्धियों का खूब जश्न मनाते और उसे और ज्यादा बेहतर करने के लिए एक दूसरे को प्रेरित करते थे।


लेकिन अगर सबकुछ इसी तरह से सही चलता रहता तो ना तो आपके बीच मैं होता और ना ही ये कहानी। वो कहते हैं न कि एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते। ठीक वैसा ही उन दोनों के साथ भी हुआ। एक दूसरे की हर जरूरतों को पूरा करते करते इशिका कब सक्षम की जरूरत बन गयी, इस बात का अहसास उसे कभी हुआ ही नहीं। इशिका से बात करने की उसकी आदत अब लत बन चुकी थी। उसके कॉल या मैसेज का आना सक्षम के लिए वैसा ही हो गया था जैसे किसी महफ़िल में खुद जन्नत का आना। उससे बात करने के बाद घंटों यूँ ही जगे रहना, अक्सर अकेले में उसे सोच कर मुस्कुराते रहना, हर समय बस उसके कॉल या मैसेज का इंतजार करते रहना, एक दिन बात न होने पर एक अलग किस्म की बेचैनी में खो जाना.... बस यहीं सब सक्षम की जिंदगी में अब चल रहा था।


धीरे-धीरे अब सक्षम को ये महसूस होने लगा कि अब उन दोनों की दोस्ती बस दोस्ती नहीं रही है और एकतरफा प्यार में तब्दील हो गई है। एकतरफा इसलिए क्योंकि सक्षम को ये बात पता थी कि इशिका ने उसे अपनी जिंदगी में सिर्फ एक दोस्त का दर्जा दिया है। सक्षम ने अपनी इन भावनाओं को इशिका के सामने कभी रखा भी नहीं क्योंकि उसे डर था कि कहीं उसके इस एक कदम से उनकी दोस्ती में कोई दरार न आ जाए।


अब रात के 2 बजने वाले थे, सक्षम अब भी जगा हुआ था। अचानक उसके फोन की लाइट जली, फोन स्क्रीन पर इशिका का नाम लिखा नजर आ रहा था। अमूमन इशिका रात में 11-11:30 बजे सो जाया करती थी। इतनी रात को इशिका के फोन ने सक्षम के मन में एक खलबली सी मचा दी। सक्षम ने हड़बड़ाहट में फोन उठाया तो उधर से एक हल्की आवाज आई- सो गए थे क्या? उसके इस सवाल से सक्षम को ये समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि इशिका के साथ कुछ तो हुआ है?

सक्षम के पूछने पर इशिका ने बताया कि उसके पास अब उसके लक्ष्य को पाने के लिए ज्यादा वक्त नहीं है और घर वाले अब उसकी शादी की तैयारी कर रहे हैं। आज शाम को ही उसके घर से ये बताने के लिए फोन आया था और साथ में 2-3 लड़कों की फोटो भी आई है। ये सब सुनते ही सक्षम के सामने एक सन्नाटा सा छा गया और वे दोनों कुछ देर तक एकदम चुप रहे। उन पलों में सक्षम के सामने वो पिछले 4 साल, जो उसने इशिका के साथ गुजारे थे, वो सब फ्लैश बैक की तरह उसके सामने चलने लगे। वो चाहकर भी इशिका की इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा था। वो लड़की जिसकी फिक्र अनजाने में भी उसके दिल के एक कोने में हमेशा दफन रहती है, उसके साथ न होने की बात को वो मान ही नहीं रहा था। उस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ने बिना किसी लाइफ सपोर्ट के उसे बीच समंदर में फेंक दिया हो।


खैर सक्षम ने किसी तरह हिम्मत करके अपनी सारी भावनाओं को अपने दिल से निकाल कर इशिका के सामने रख दिया और इंतजार करने लगा एक ऐसे जवाब का जो उसे शायद पहले से ही पता था। दूसरी तरफ एक अनजान खामोशी देखकर इशिका को ये पहले ही आभास हो गया था कि ऐसा कुछ होने वाला है। लड़कियां भावनाओं को समझने में लड़कों से कई कदम आगे होती हैं, इस बात की पुष्टि उस रात फिर एक बार हुई थी।


इशिका ने सारी वस्तुस्थिति को देखते हुए बड़ी ही संजीदगी से एक जिम्मेदार दोस्त की तरह सक्षम को ये कहते हुए मना कर दिया कि '' मैं तुम्हें हाँ नहीं कर सकती और तुम्हें भी मेरे इस फैसले में मेरा साथ देना होगा।" उस रात फिर इशिका ने सक्षम को वो सारी बातें बतायी जिससे कि वो अब तलक अनजान था। इशिका का किसी और के साथ प्यार में पड़ना, एक दूसरे से शादी कर जिंदगी भर साथ रहने का फैसला करना और फिर उस लड़के के परिवार वालों का इशिका को स्वीकार न करना, ये सब बातें इशिका ने सक्षम को उस दिन पहली दफा बतायी। सक्षम ये सब सुनकर हैरान था कि आजतक उसने जिस इशिका को हमेशा हंसते हुए देखा या सुना था, वो लड़की अपने अंदर इतना दर्द छुपाए बैठी थी। इशिका की बातें अभी पूरी नहीं हुई थी। इशिका ने सक्षम को यह भी बताया कि कैसे उसे काफी पहले ये महसूस हो गया था कि उसकी दोस्ती अब उसके लिए प्यार में बदल गयी थी।


लेकिन उसने जानबूझकर सक्षम को ये सब नहीं बताया क्योंकि उसे ये पता था कि वे दोनों ही जिस सामाजिक परिवेश से आते हैं, वहाँ ऐसे रिश्ते की कोई अहमियत ही नहीं थी। और शायद इसी वजह से उसने इस रिश्ते से अनजान रहना ही बेहतर समझा और उस दोस्ती को बस दोस्ती ही रहने दिया।


इशिका का सक्षम को हां न कह पाने की एक वजह शायद ये भी थी कि जिन परिस्थितियों, जिस दर्द को वो एक बार झेल चुकी थी, उसे फिर से वह महसूस नहीं करना चाहती थी। उस रात उन दोनों की बातें खत्म नहीं हुई, खत्म हुई तो बस उन दोनों के बीच की वो सारी उलझनें जिसे लेकर वे दोनों न जाने कब से एक कशमकश में थे।

"अपना ध्यान रखना" ये कहकर इशिका ने उस रात फोन रख दिया।

इधर सक्षम एक ऐसे चक्रवात में फंस गया था जिससे निकलने का उसे कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था। सक्षम को इशिका की हर बात सही लग रही थी। उसे इशिका के मना करने की वजह भी सही लग रही थी और इशिका के लिए उसका प्यार में पड़ना भी।


सक्षम को अब ऐसा लगने लगा जैसे किसी ने उसी के हथियार से उसकी जान ले ली हो क्योंकि जिन सामाजिक मुद्दों पर लिख लिखकर उसने अपनी पहचान बनाई थी, उन्हीं सामाजिक रिवाजों ने आज उससे अपना बदला ले लिया था, इशिका को उससे छीनकर ।


खैर अब उन दोनों की बातें नहीं होती, शायद इस वजह से कि अब उनकी दोस्ती, दोस्ती रही ही नहीं थी या फिर इस डर से कि उनके आगे की बातों से उनके बीच सिर्फ और सिर्फ दूरियाँ ही बढेंग़ी और ऐसा न तो सक्षम चाहता था और न ही इशिका । सक्षम के लिए ये एकतरफा प्यार भी किसी तोहफे से कम नहीं था। क्योंकि अब उसे इशिका को चाहने के लिए ना तो इशिका की जरूरत थी और ना ही उसके स्वीकृति की। खैर इस बात को बीते हुए एक लम्बा समय हो गया है। अब सक्षम रात को किसी के फोन या मैसेज का इंतजार नहीं करता। उसकी हिंदी रचनाओं में अब किसी सामाजिक मुद्दों का जिक्र भी नहीं होता। उसकी जगह अब इशिका और उसकी यादों ने ले लिया है जिसे सक्षम ने कविता के जरिये अपने आप में जिंदा रखा है।


इशिका ने भी अपने मधुबनी पेंटिंग में एक किरदार को स्थायी रूप से शामिल कर लिया है। अब वो किरदार कौन है- सक्षम या फिर उसका प्यार, ये बात इशिका के अलावा किसी को पता नहीं।




लेखक-

सौरभ चंद्रा

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