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Writer's pictureअंजान (कृष्ण कांत त्रिपाठी)

**अवसाद अकेलेपन का साथी**

अवसाद अकेलेपन का साथी


बहुत पहले पढ़ा था कि "यदि कोई शख़्स बहुत ज्यादा हंसता है तो वह अंदर से बहुत दुःखी है। "मैं उस वक़्त इस बात को यूं ही ले लिया था, क्योंकि उस वक़्त तक मैं प्रेम में था। प्रेम में पड़ा व्यक्ति अंधा होता है, उसे प्रेम के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता है। उसे झूठ फरेब जालसाजी सब कुछ बेमानी लगता है। वह बस प्रेम ही बांटता है और प्रेम की ही अभिलाषा रखता है। परंतु वही व्यक्ति जब प्रेम में धोखा पाता है, तो उसे दुनिया के बारे में सोचने का एक मौका मिलता है। तब वह दुनिया के कई रूप को देखता है, और धीरे धीरे दुनिया को समझते समझते उसके मन में इस कदर दुनिया के प्रति घृणा भर जाता है कि उसके मन में विरक्ति की भावना उत्पन्न होने लगता है और यही विरक्ति की भावना उसके जीवन का दुश्मन बन जाती है। जिसके परिणामस्वरूप वह किसी भी हद तक चला जाता है यहां तक की अपनी जीवन लीला भी समाप्त कर देता है।


दुनिया से विरक्ति का कारण सिर्फ प्रेम में प्राप्त धोखा ही होता है ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। विरक्ति के कई कारण होते हैं जैसे कि पारिवारिक कलह, लोगों का आपके प्रति कठोर रवैया, असफलताओं का बोझ, सामाजिक ताने, अपनों से दूरी, अकेलापन, किसी अत्यन्त प्रिय का दूर जाना, कोई आकस्मिक घटना जो आपके हृदय को झकझोर दे या यूं कहें कि कुछ भी ऐसा जो आपके अंतः मन को विचलित कर दे। यह सब कुछ मानव हृदय में विरक्ति उत्पन्न करने के प्रमुख कारण होते हैं।


सवाल यह उठता है कि क्या विरक्ति की भावना ही जीवन की सबसे बड़ी दुश्मन है?? मेरा मानना है कदाचित नहीं..

विरक्ति की भावना आपके जीवन की दुश्मन है यह बिल्कुल ही गलत है, क्योंकि विरक्ति की भावना तो पहला स्टेज होता है, विरक्ति तो कभी भी किसी के भी मन में किसी भी प्रकार से उत्पन्न हो सकती है। विरक्ति तो नफ़रत का ही एक रूप है और नफरत तो भला छड़ भर की कहानी है। मानव जीवन का वास्तविक दुश्मन तो है उस विरक्ति के भावना से उबर न पाना, क्योंकि वही विरक्ति धीरे धीरे अवसाद (डिप्रेशन) का रूप धारण कर लेता है, और अवसाद ही अंत का कारण बन जाता है।


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परन्तु समस्या यह है कि विरक्ति से अवसाद का सफ़र तय करता हुआ मानव जीवन आखिर अपने उस रास्ते से बाहर कैसे आएगा। आखिर क्यों कोई अपने सफ़र को बीच मंजिल में छोड़ेगा? आखिर क्या मिलेगा उसे उस मंजिल को छोड़कर? सवाल तमाम हैं, परन्तु इन्हीं सवालों से उबरकर जिंदगी की मंजिल तय होती है।


यदि कोई व्यक्ति किसी के प्रति विरक्ति का भावना रखता है तो यह आवश्यक है कि उसे ज्यादा से ज्यादा प्रेम दें, क्योंकि प्रेम ही नफरत को मिटा सकता है। यकीनन यह कठिन कार्य है मगर यही तो एकमात्र विकल्प भी है। किसी असफल छात्र को प्रेम मिलना कठिन होता है, परंतु उसी छात्र के आत्महत्या के उपरांत केवल पश्चाताप ही हांथ आता है। हम कुछ बिगड़ जाने के बाद पश्चाताप करें इससे तो बेहतर है कि वक़्त रहते हालात को संभाल लें।


वर्तमान समय में जबकि हम सभी सामाजिक होने के बजाय सोशल हो चुके हैं, यह अति आवश्यक हो चुका है कि जो लव और केयर के रिएक्ट एक दूसरे के पोस्ट पर देते हैं, वह पोस्ट से उतरकर हम सभी के दिलों तक भी आए, क्योंकि वर्तमान समय की कड़वी सच्चाई यह है कि हम सभी किसी के मरने के दुख भरे पोस्ट पर दुःख का इमोजी तो जरूर रिएक्ट कर देते हैं, परन्तु एकबार उस शख़्स के मनोदशा को समझने का वक़्त हम सभी के पास नहीं होता है।


सोशल साइट्स पर हम सभी के हजारों लाखों और करोड़ों में फॉलोवर्स और फ्रेंड होते हैं परन्तु वास्तविक जीवन में एक भी ऐसा मित्र या पारिवारिक सदस्य नहीं होता है, जिससे कि हम अपने मन के खुशी और गम को बांट सकें। हम अपने गम और खुशी दोनों ही स्थिति में अकेले ही सफर करते हैं और लाइक और कमेन्ट बटोरते रहते हैं। परन्तु धीरे धीरे हमारे गम जब अवसाद का रूप ले लेते हैं, तो हम सोशल साइट्स से भी दूरी बनाने लगते हैं और अंततः हम जीवन को अर्थहीन समझने लगते हैं तदोपरांत हम किसी पंखे से दोस्ती कर लेते हैं या फिर बहती नदी के प्रेम में बह जाते हैं।


फिर हम देखते हैं कि वो जो हमारे फॉलोवर्स कुछ दिनों से हमारी ख़बर नहीं ले पा रहे थे, आज मेरे तारीफ़ की कसीदें पढ़ रहे हैं, और मेरी उन अच्छाइयों का भी पर्दाफाश कर रहे हैं जिन्हें मैं स्वयं नहीं देख पाया था। उससे भी जी नहीं भरता तो हमें कोश रहे होते हैं कि हमें यह कदम नहीं उठाना था। अभी हमें जिंदगी को एक मौका और देना था। परन्तु हम उन्हें कैसे बताएं कि हम जिंदगी को मौका क्यों देते? आखिर मेरे मौत से पहले मेरा महत्व भी तो कोई ख़ास नहीं था। मैं हजारों लव रिएक्ट पाकर भी किसी से अपने दिल की बात नहीं कह सकता था, क्योंकि लव इमोजी जिंदगी में प्रेम नहीं लाती है।

अवसाद अकेलेपन का साथी

मैं स्वयं प्रेम के दिनों में इमोजी को वास्तविक प्रेम समझ बैठा था, यहां तक कि जब विरक्ति के उपरान्त अवसाद की ओर अग्रसर हुआ था, तब हजारों विचार मन में हर रोज आते थे, की आखिर यह नदी कहां तक जाती होगी, यह चलता हुआ पंखा रुकता कब होगा, नसों से खून का बहाव कैसे होता होगा, जहर धमनियों को बेचैन कैसे करता होगा। परन्तु मुझे उसी छड़ याद आता था कि मेरे घर परिवार में तमाम लोग रहते हैं जिनका प्रेम कहीं ज्यादा मूल्यवान है। मेरे तमाम दोस्त हैं जो पोस्ट पर लव रिएक्ट तो नहीं करते, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर जान की बाजी अवश्य लगा देंगे, मेरे तमाम गुरुजन हैं जो हमेशा मुझे सिखाते आए हैं कि बेटा मेरे शिक्षा कि असली परीक्षा विकट परिस्थितियों में ही होगी, और यह तमाम बातें मुझे हौसला देती थीं कि ये वक़्त गुज़र जाएगा। अंततः वक़्त गुजर गया और अवसाद का जगह प्रेम ले लिया।


भारत में जब कोई सेलेब्रिटी अवसाद की मौत मरता है तो यह चर्चा का विषय बनता है, इनके जाने पर हजारों नौजवान शोक मग्न होते हैं, बड़े बड़े होर्डिंग्स लगते हैं, तमाम स्लोगन चलते हैं। हालांकि यही मानवता का रूप भी है,दूसरों के दुःख में दुःखी होना भी चाहिए। परन्तु हमारे समाज में हर रोज सैकड़ों लोग आत्महत्या कर लेते हैं जिसकी हमें ख़बर नहीं होती है। जिनके बारे में उनके चंद सोशल मित्र ही दुःख प्रकट कर पाते हैं तथा वे भी पुनः अपने आभासी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं। यह दुःखद है। अतः आवश्यक है कि हम आभासी दुनिया से बाहर आएं और एक दूसरे के सुख दुःख का भागी बनें। विरक्ति को अवसाद के स्वरूप में परिवर्तित होने से पहले प्रेम में परिवर्तित करें। यही वास्तव में हमारी मित्रता और मानवता भी है।


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©®कृष्ण कांत त्रिपाठी "अंजान"


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