प्यार मुहब्बत मेरे सिलेबस के बाहर की चीज है, जैसा की घरैतिन कहतीं हैं, तुम्हें शिकायतें करना बहोत आता है, बस यहाँ भी वही कर रहा हूँ, यूं तो कइयों नें कितनों के लिए क्या कुछ न लिखा होगा, मेरी उनसे किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा नहीं है, न ही मैं करना चाहता हूँ और न ही इस काम के लिए खुद को मुक़ाबिल समझता हूँ । मेरा इस कदर लिखना बस इस वजह से मय्य्स्सर हुआ है की कई कई बार ऐसा होता है की कुछ बातें कह नहीं पाये जो कहे देना चाहिए, इसके पीछे अलग अलग वक़्त पर अलग अलग वजहें जरूर रही हैं पर आज शुरुआत की है तो कहे देता हूँ,
1. मुस्कुराहट
शोख नजरें मुहब्बत की,
अदा मे भी नज़ाकत है,
हंसी मे खिलखिलाहट है,
बोल मे कुछ बगावत है,
कुछ यूं ही हुस्न बनता है,
दिल कहाँ फिर संभलता है,
देख कर तुझे बहक जाना,
बड़ा खुशगीन लगता है,
तेरा हर दम मेरे मन मे टहलना ठीक है लेकिन,
दिल को खालीपन मे तुम्हारा याद आ जाना,
अच्छा नहीं लगता।
2. बात
बड़े अंदाज़ से यूँ मुसकुरा कर,
तल्ख़ सी बात को कहना,
कसकती सी बात को,
खूबसूरती से यूँ ही कह जाना,
और
तौहीन की बातें खालिश जुबानों में
दबे अरमान पे,
कुछ ज़र्द सी खुरचन सी कर जाना
अच्छा नहीं लगता।
3. हालत
सड़क पर बेजुबाँ
तौहीन को सहना तेरा पल पल
हर कदम होती है तुमको
कहीं कुछ खौंफ की हलचल
ऐसे कई जख्म लेकर
भी तेरा वो मुस्करा देना
अच्छा नहीं लगता
4. संकोच
ज़माने भर की नज़रों से
कभी छुपके छुपा कर के
मुझसे मिलने को आना
तोह बाखुदा,खूब जंचता है,
जल्दी जाना है, माँ डाटेंगी
केह कर सिर झुका लेना
जरा सी बात सुनकर ये
मुझे
अच्छा नहीं लगता।
5. नाराज़गी
मुस्कुराते हुए क्या खूब लगती हो
ज़रा क्या इल्म है इसका
ऐसी तस्दीक के आगे
ज़माने भर की कोई बात
इससे भी खूबसूरत है
ऐसी बातों को सुन कर के
मेरा तोह ठीक
पर मेरे दिल को कुछ
अच्छा नहीं लगता
6. उम्मीद
फोनपर बातों बातों में
रुक के कुछ काम करती हो,
कभी गंभीर बातों में
फोन पे होल्ड करती हो
और परेशान रहकर भी
कुछ भी नही हुआ जो कहती हो,
कसम से खीझ उठती है,
मगर तुम जिक्र छेडोगी
उस इन्तेजार का वो पल
अच्छा नही लगता
7. स्वभाव
तुमसे बातें कर लेने को
बहुत अकुलाता है ये मन
चित्त से, और बुद्धि से
तो लड़ जाता है ये मन
पर अहँकार के सदृश
विवश हो बात न करना
अच्छा नहीं लगता
8. बेरुख़ी
कभी जो रूठ जाती हो
जहान बेमतलब लगता है
कभी जब गुस्सा होती हो
रंग बेरंग लगते हैं
बड़ी बेखौफ सी होकर
जब कसीदे तुम पढ़ती हो
कसम से मुस्कुरा कर
बेशर्मी से सुन तोह लेता हूँ
पर कभी आंख भर जाती है
जब भी तुम रोने लगती हो
यूँ तुम्हारा दिल का भर जाना
अच्छा नही लगता
9. फर्क
कहती हो फर्क नहीं पड़ता
मुझे कुछ समझ नही आता
जब कभी गुस्सा होती
खुद को तकलीफ होती है
जब भी तुम दुखी सी होती
मन मेरा रुआं सा होता है
बताओ कैसे मैं कहूँ
ये सब
अच्छा नही लगता
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