पता है मैं आज शहर गया था पोस्ट ऑफिस के पास बने कंपनी बाग ने मुझे खींच लिया उसने शायद मेरे कदमों की आहट सुन ली थीं । जब वहाँ गया तो देखा जिस कुर्सी पर बैठकर हम भविष्य के सपने संझौते थे वह कुर्सी टूटी हुई कचरे के ढेर के मध्य पड़ी थी वो टूटी हुई कुर्सी मुझें हमारा बिखरा हुआ रिश्ता लगा |
तुम्हे पता है न उस वीराने से बाग जिसे हम कम्पनी बाग कहते थे उसकी कुर्सी पर हमनें कितनी बातें-मुलाकातें की थीं । मुझें पता है मैंने अपनी जीवन की व्यस्तताओ में तुम्हें रुमाल डालकर बस में रोकी हुई सीट समझ लिया, मै भूल गया मैंने तुम्हें पाया है रोका नही है । प्रेम कोई रिज़र्व टिकट पर की हुई यात्रा थोड़ी होती हैं वो तो बग़ीचे में, घूमते हुए हाथों में हाथ डालें हुए बिताए पलों की यात्रा होती है। कभी कभी तो सोचता हूँ तुम आई ही क्यों थीं जब तुम्हें जाना ही था पर फ़िर दिल कहता हैं तुमनें तो मुझें बेहतर इंसान बनाया है, न तुमनें तो मेरे भीतर एक स्नेह के बीज को अंकुरण दिया है, न आज पर्यावरण दिवस है औऱ आज तुमनें मुझसे ब्रेकअप कर लिया जिस दिन लोग दुनियां को हरा-भरा करने में लगें रहते है | मिनी, तुमनें तो उस दिन मेरी दुनियां ही वीरान कर दी मुझें तुमसे कोई शिकायत नहीं है, होगी भी क्यों जो लड़की मेरे भविष्य को बेहतर करने के लिए मुझें छोड़ गई उसके त्याग को मैं कैसे लजा सकता हूँ पर अगर तुम साथ होती तो औऱ बेहतर होता आज मैं जितना सार्थक हो पाया हूँ उसमें तुम्हारे त्याग का अंश भी उतना ही है जितना मेरा मेहनत का अंश हम दोबारा एक नहीं हो सकते है क्या? अरे यह मैं क्या कह रहा हूँ मंजिल पर पहुँच जाने के बाद साहिल थोड़ी साथ रहता हैं| मुझें पता है कि अब हम नही मिल सकते हैं पर एक बात कहुँ ईश्वर करें हम कभी न मिले क्योंकि मैं वो उदासी औऱ तड़प अब बर्दाश्त नहीं कर सकता हूँ|
सिर्फ़ वक़्त नहीं हैं पर मुझें उम्मीद हैं तुम्हारे सीने के भीतर "जो मेरा नाम लिखा है जैसे रेत पर लिखते हैं उंगलियों से, उसे शायद ही कोई समंदर की लहरें मिटा पाए" यह चिट्टी नहीं है यह मेरी तरफ से एक माफीनामा है औऱ साथ ही साथ इस रिश्ते को दी गई एक तिलांजलि ख़ुश रहो सार्थक बनो औऱ दुआ करो मेरी रूह को इस रिश्ते से आज़ादी मिल जाए अलविदा
तुम्हारा अनचाहा दोस्त अर्श
लेखक
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