किसी की राह में
किसी की राह में हूं,
किसी की मंज़िल पे असर कर रहा हूं।।
या मैं यूं ही बीता लम्हा हूं,
जो किसी के वक़्त में बस बसर कर रहा हूं ।।
मेरे कदम कभी किसी रेत पे छपे भी हैं,
या मैं बस पानियों पे सफर कर रहा हूं।।
वो बस्ता भी हैं कहीं किस्मत में मेरे,
या किसी दूसरे के हमसफ़र को मैं नज़र कर रहा हूं।।
बंद हो गए हैं दरवाज़े मेरे खुदा के भी,
या उसकी इबादत में मैं कोई कसर कर रहा हूं।।
यूं नहीं हैं कि मुझे उसके जाने का ग़म नहीं,
मैं बस अब हसीन यादों की क़दर कर रहा हूं।।
दफ़न नहीं कर सकता तेरी मोहब्बत को मगर,
हर उम्मीद को अपनी मैं कबर कर रहा हूं।।
वक़्त नहीं देती हैं सोने का भी मुझे,
तेरी यादों से अपनी रातों को सहर कर रहा हूं।।
ये सच है कि मैंने तेरे बिन भी सांसें ली हैं,
कह सकते हो मौत तक हर लम्हा सबर कर रहा हूं।।
मैंने अपनी तमाम ज़िंदगी तेरे साथ जी ली है,
ये कुछ तकल्लुफ़ ख़त्म होने तक गुज़र कर रहा हूं।।
लेखक
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