पल में यूँ है !!
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कुछ एक पल में यूँ ही सो गया,
कहीं मेरा कुछ खो सा गया,
सब है लेकिन एक एहसास बाकी है,
कोरा है मन लेकिन जज़्बात बाकी है।
दुनिया के इस शोर में ख़ामोशी करती एक गुफ़्तगु है,
यह ही आबो हवा और यह ही जुस्तजू है।
कुछ इस पल में यूँ है, लगता है की सब क्यों है?
महफ़िल में आज मेरे तुम तो नहीं हो,
लेकिन ज़ेहन में मेरे बस यही कही हो।
इसे चाहे कहो मेरा अफ़साना चाहिये कहो मेरा फितूर,
लेकिन मेरे गलिओं में तुम्हारा आना आज भी तुम्हारा ज़रूर है।
इस बात का गरूर आज भी हमे ज़रूर है,
क्यूंकि गलियों में हमारी तुम्हारा आना जाना आज भी ज़रूर है।
लेखक
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