हसरतें - कुछ अनकहीं सी
तुझसे रूठा था, पर तेरा शहर मुझे अपनाना था,
तुने रोका तो में रूका, वरना मुझे तो जाना था|
अब ना कोई वजह ना कोई बात बाकी है,
लगता है बस तेरे मेरे साथ की बस एक रात बाकी है|
अंदाज़-ए-ब्यान मेरा शायद कल तुम भूल भी जाओगी,
लेकिन शिद्दत से इतनी मोहोबत की है मैंने तुम्हे,
अपनी रोम रोम में बसा मेरा एहसास हरदम पाओगी|
लेखक-
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