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हसरतें - कुछ अनकहीं सी | Hasaraten - Kuch Anakahen See

Updated: May 7, 2021

हसरतें - कुछ अनकहीं सी


तुझसे रूठा था, पर तेरा शहर मुझे अपनाना था,

तुने रोका तो में रूका, वरना मुझे तो जाना था|


अब ना कोई वजह ना कोई बात बाकी है,

लगता है बस तेरे मेरे साथ की बस एक रात बाकी है|


अंदाज़-ए-ब्यान मेरा शायद कल तुम भूल भी जाओगी,

लेकिन शिद्दत से इतनी मोहोबत की है मैंने तुम्हे,

अपनी रोम रोम में बसा मेरा एहसास हरदम पाओगी|


लेखक-

अविक

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